कोलकाता सभा - इतिहास के आइने में कोलकाता महानगर का तेरापंथ धर्मसंघ की दृष्टि से बिशिष्ठ स्थान है। यहां तेरापंथी परिवारों की सबसे अधिक सघनता है। इस महानगर में लगभग ढेड़ सौ वर्ष पहले राजस्थान से सैकड़ों परिवार व्यापारार्थ प्रवासित होते-होते निवासी हो गए। वर्तमान में यहां तेरापंथी परिवारों की संख्या पांच हजार से ऊपर है। निष्ठावान एवं समर्पित श्रावकों ने कोलकाता से भी धर्मसंघ की सेवा एवं आचार्यों के निर्देशों की अनुपालना में सदैव तत्परता दिखलाई है। प्रारंभ में श्रावकों ने अपने व्यक्तिगत सामर्थ एवं पहुंच के आधार पर अनेकों बार तेरापंथ धर्मसंघ पर आए गतिरोधों को निरस्त कराया। आचार्य कालूगणि के शासनकाल के उत्तरार्ध में प्रबुद्ध एवं निष्ठावान श्रावकों की सूझ-बूझ से तेरापंथ समाज व्यवस्थित संगठन की ओर अग्रसर हुआ। तेरापंथ समाज की दृष्टि से कोलकाता महानगर का सबसे पहला गौरव महासभा भवन है। कोलकाता तेरापंथ की श्रद्धा का प्रगाढ़ क्षेत्र रहा है। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य महामना कालूगणि के शासनकाल में सन 1913 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का गठन हुआ। जिसका प्रमुख केन्द्र बना कोलकाता महानगर। यहीं से हमारे धर्मसंघ की लगभग सभी धार्मिक गतिविधियों का संचालन, प्रसारण एवं निर्धारण होता रहा। सामयिक अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा महासभा की गतिविधियों के व्यवस्थित संचालन हेतु सन 1950 में भवन का क्रय किया गया जिसका नामकरण हुआ ‘महासभा भवन’। तत्कालीन प्रबुद्ध चिंतक श्रावकों की सूझ-बूझ से महासभा भवन में तेरापंथी विद्यालय की स्थापना हुई। श्रावक समाज की सुदूरगामी सोच थी कि हमारे परिवारों के बच्चे सुशिक्षित होने के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूर न हो। अतीत के विहंगावलोकन व समीक्षात्मक चिंतन के बाद आज कहा जा सकता है कि इस तेरापंथी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त अनेकों ऐसे कर्मठ बुजुर्ग हैं जिन्होंने धर्मसंघ को अपनी सक्रिय सेवाएं दी है और दे रहे है। वर्तमान में शासन सेवा में रत शासनश्री मुनिश्री धर्मरुचिजी स्वामी भी इसी विद्यालय के छात्र रहे है।
तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी ने इसी महासभा भवन में सफल चातुर्मासिक प्रवास किया। वह ऐतिहासिक मंगलमय वर्ष था वि.सं. 2016 । उससे पूर्व पूज्य गुरुदेव के चातुर्मासिक प्रवास की पृष्ठभूमि के निर्माण के लिए वि.सं. 2015 में साध्वीश्री राजीमतीजी का यहां चातुर्मास हुआ। वि.सं. 2022 से आज तक यहां लगभग लगातार साधु- साध्वियों के चातुर्मास हो रहे हैं। यह कोलकाता के श्रावक समाज की जागरूकता, संघनिष्ठा व रास्ते की सुव्यवस्थित सेवा का ही प्रतिफल हैं। प्रारंभिक वर्षों में समागत साधु-साध्वियों का प्रायः पहला चातुर्मास महासभा भवन में तथा दूसरा मित्र परिषद भवन में ही होता था। उस समय अन्यत्र चातुर्मासिक प्रवास स्थल उपलब्ध नहीं था, क्योंकि प्रारंभ में राजस्थान से समागत श्रावक सपरिवार बहुत कम आते थे। लगभग 70-80 वर्ष पूर्व थली संभाग के कुछ विशिष्ट परिवारों की यहां गद्दियां व ऑफिसें बनी। परंतु गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी की चरण धूलि का स्पर्श पा यहां के श्रावक समाज की विलक्षण समृद्धि बढ़ी। आज यहां अनेकों श्रावकों की अपने स्थान की सुविधाएं है जहां चारित्रात्माओं का सकुशल प्रवास व समय समय पर क्षेत्रों की सार संभाल करने से सुगमता होती है। वर्तमान में वृहत्तर कोलकाता में चातुर्मास के लिये भी अनेक नये स्थान उदघाटित हो चुके हैं।
प्रारंभ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा पूरे भारत वर्ष में संघीय गतिविधियों को संचालित करने के साथ-साथ कोलकाता में पधारने वाले साधु-साध्वियों की सेवा एवं चातुर्मास व्यवस्था का दायित्व भी निभाती थी। कालान्तर में आचार्यश्री तुलसी की पारगामी प्रज्ञा के परिणाम स्वरूप श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, कलकत्ता का गठन हुआ। इसके संस्थापक अध्यक्ष बने स्व. जंवरीमल बैंगानी एवं संस्थापक मंत्री बने श्री भंवरलाल सिंघी। सभा के गठन के समय स्थितियां बहुत ही विषम थी। पूज्य आचार्यप्रवर ने कोलकाता के पांच श्रावकों को सभा के संविधान एवं रजिस्ट्रेशन आदि कार्यों को संपादित करने का इंगित किया एवं स्व. जंवरीमल बैंगानी का गुरुदृष्टि से अध्यक्ष पद पर मनोनयन हुआ। स्व. बैंगानीजी ने अपनी सूझ-बूझ से कोलकाता श्रावक समाज को विश्वास में लेकर सभा का संविधान बनाया एवं सभा को सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत करवाया तथा सम-सामयिक स्थितियों को व्यवस्थित रूप से नियंत्रित किया। स्व. जंवरीमल बैंगानी के बाद क्रमशः श्री भोजराज बैद, श्री भंवरलाल बैद, श्री कन्हैयालाल पटावरी, पुनः श्री भोजराज बैद, श्री माहालचन्द भंसाली, स्व. करनसिंह नाहटा, श्री जंवरीलाल नाहटा, श्री अमरचन्द दुगड़, श्री तेजकरण बोथरा और वर्तमान में श्री बुधमल लुनियां ने कोलकाता सभा के नेतृत्व की बागडोर संभाली है। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-कोलकाता, कोलकाता की प्रतिनिधि संघीय संस्था है। कोलकाता में होने वाली तेरापंथ धर्मसंघ की प्रत्येक गतिविधि से सभा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ी हुई है। यद्यपि क्षेत्रीय व्यवस्थाएं क्षेत्रीय संघीय संस्थाएं करती हैं फिर भी कुछ विशेष दायित्व होते हैं जिनका निर्वहन कोलकाता सभा सदैव करती है, जैसे केन्द्र से निरंतर संपर्क, चारित्रात्माओं के विहार की व्यवस्था, आवास-प्रवास की व्यवस्था, चारित्रात्माओं के पादविहार के समय रास्ते की सेवा व्यवस्था, महासभा भवन में चातुर्मास व्यवस्था, चारित्रात्माओं के साथ काषीद की व्यवस्था, उपनगरों में चारित्रात्माओं के विचरण की संयोजना व समय समय पर गुरु दर्शनार्थ यात्राओं का आयोजन, संघीय कार्यक्रमों की आयोजना आदि अनेकों कार्य सभा की देखरेख में ही सम्पादित होते हैं।
पूज्यप्रवरों की कोलकाता क्षेत्र पर हमेशा ही कृपा दृष्टि रही है। उनकी कृपा से यहां प्रतिवर्श चारित्रात्माओं के चातुर्मास होते है। मुनिश्री सुमेरमलजी ‘लाडनूं’ के पंचवर्षीय प्रवास में संघीय विकास की दृष्टि से कोलकाता श्रावक समाज का कायाकल्प हुआ। अनेकों संघनिष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ एवं वृहत्तर कोलकाता में नव जागृति का संचार हुआ। बाल पीढ़ी में संस्कार निर्माण एवं ज्ञानवर्धन हेतु मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी द्वारा रचित ‘शिशु संस्कार बोध’ पुस्तक की 5000 प्रतियों का प्रकाशन करवाकर सभा द्वारा वितरित किया गया। मुनिश्री की सतत प्रेरणा से कोलकाता में श्रावकों के आपसी अभिवादन में ‘ऊँ अर्हम’: ‘अर्हम नमः’ जन-जन के अवचेतन मन में स्थापित हुआ। वृहत्तर कोलकाता के श्रावक समाज को संघीय गतिविधियों, स्थानीय कार्यक्रमों तथा केन्द्रिय समाचारों से अवगत कराने हेतु मुनिश्री की विशेष प्रेरणा से ‘तेरापंथ समाचार’ मासिक विज्ञप्ति का प्रकाशन कोलकाता सभा द्वारा प्रारंभ किया गया। इस विज्ञप्ति के संपादन का दायित्व श्री करनसिंह नाहटा एवं प्रबंध तथा अन्य व्यवस्थाओं में श्री राजकुमार श्यामसुखा, श्री शांतिलाल बैद, श्री महेन्द्र दुधोड़िया एवं श्री रतन बैंगानी की सक्रिय भूमिका रही। इस विज्ञप्ति का प्रकाशन मुनिश्री सुमेरमलजी के प्रवासकाल में चला एवं 5000 प्रतियां प्रति माह तेरापंथी परिवारों में प्रेशित की जाती थी। मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी की अभिप्रेरणा से एवं मुनि उदितकुमारजी के निर्देशन में दिनांक 27 सितम्बर 1991 को ‘जैन कार्यवाहिनी’, कोलकाता का उद्भव हुआ। कार्यवाहिनी के स्थापनाकाल से अब तक निर्देशक का दायित्व श्री बजरंग जैन बखुबी निभा रहे हैं।
सन 1993 में जैन सभा एवं भारत जैन महामंडल, कोलकाता शाखा एवं हमारी सभी संघीय संस्थाओं की सहभागिता से नेताजी इंडोर स्टेडियम में संपूर्ण जैन समाज का ऐतिहासिक सामूहिक क्षमापना कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में 14000 व्यक्ति उपस्थित हुए एवं दिल्ली से तात्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल तथा टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के चेयरमैन श्री अशोक जैन मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। मुनिश्री सुमेरमलजी का विशेष उदबोधन बहुत प्रभावक रहा। कोलकाता तेरापंथी समाज की सक्रिय सहभागिता एवं उल्लेखनीय उपस्थिति रही। कोलकाता सभा के उदभव के समय महासभा भवन के उपरी तल में स्थित प्रवचन पंडाल जीर्ण शीर्ण अवस्था में था। बाद में कोलकाता सभा के संस्थापक अध्यक्ष एवं महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष स्व. जंवरीमल बैंगानी के मार्गदर्शन में श्री भोजराज बैद, श्री भंवरलाल बैद, श्री कन्हैयालाल पटावरी, श्री माहालचन्द भंसाली, श्री मूलचन्द डागा, स्व. गुलाबचन्द बोथरा, श्री जतनलाल पारख, श्रीमती चम्पा देवी कोठारी एवं पूरी टीम के सहयोग से महासभा प्रवचन पंडाल का नवनिर्माण हुआ। कोलकाता म्यूनिसीपल कोरपोरेशन के मेयर श्री प्रशांत चटर्जी का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। इस कार्य में अनेकों कार्यकर्ताओं ने अपने समय, श्रम एवं शक्ति का नियोजन किया। पंडाल निर्माण के इस महायज्ञ में अनेकों कार्यकर्ताओं ने मूक भाव से नींव के पत्थर के रूप में अपनी सेवाएं दी। कोलकाता श्रावक समाज तन, मन, धन से सहयोगी बना। इस अव्यवस्थित ढांचे को एक व्यवस्थित रूप प्राप्त हुआ जिससे महासभा प्रवचन पंडाल (महासभा समवसरण) का नया रूप सामने आया और इसको कोलकाता कोरपोरेशन में वैधानिक करवाकर आवश्यक शुल्क राशि भी जमा करवाई गई। यद्यपि यह कार्य महासभा का था लेकिन महासभा के तात्कालीन अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल छाजेड़ ने कोलकाता सभा पर विश्वास व्यक्त कर इस दुरूह कार्य का दायित्व कोलकाता सभा को प्रदान किया। उनके प्रति हार्दिक आभार। पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से कोलकाता सभा ने इस महायज्ञ को पूरे कोलकाता श्रावक समाज के सहयोग से संपादित करवाया। यह सभा के इतिहास का अविस्मरणीय दस्तावेज बना। महासभा एवं विद्यालय परिवार में वर्षों से चल रहे विवाद को समाहित करने में सभा के पूर्व अध्यक्ष श्री भोजराज बैद, जो उस समय महासभा के प्रधान ट्रस्टी थे, के साथ-साथ अनेक व्यक्तियों ने अपना सहकार श्रम का नियोजन किया और महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
आचार्यश्री तुलसी जैन एकता के सूत्रधार थे। इसी परिप्रेक्ष्य में चारित्रात्माओं के चातुर्मासिक एवं अन्यान्य प्रवास काल में समायोजित बहुआयामी कार्यक्रमों में भारत के राष्ट्रपति महामहिम ज्ञानी जैलसिंह, उत्तरप्रदेश के राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी, माननीया मुख्यमंत्री श्रीमती ममता बनर्जी, राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, श्री तपन सिकदार, श्री प्रशांत चटर्जी, श्री सुव्रत मुखर्जी, श्री मोहम्मद सलीम, श्री सुदीप बंदोपाध्याय, श्री सुरेश दादा जैन, प्रबुद्ध साहित्यकार श्री कृष्णबिहारी मिश्रा, डा. मंगल त्रिपाठी, प्रो. कल्याणमल लोढ़ा, डा. सत्यरंजन बनर्जी, समाज भूशण श्री श्रीचन्द रामपुरिया, साहित्य सेवी श्री श्रीचन्द चोरड़िया ‘न्यायतीर्थ’, डा. महावीरराज गेलड़ा, रामकृश्ण मिशन प्रतिश्ठान के प्रमुख स्वामी लोकेश्वरानन्दजी, फादर सुनील रोजारीया, श्री जुगलकिशोर जैथलिया, श्रीमती सुनिता झंवर आदि अनेकों राजनेताओं, विशिष्ट साहित्यकारों, प्रबुद्ध चिंतक, विशिष्ट समाजसेवियों ने सभा द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में उपस्थित होकर तेरापंथ समाज का गौरव बढ़ाया। मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी के सान्निध्य में एवं कोलकाता सभा के नेतृत्व में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा के पास तेरापंथी श्रावक समाज का एक शिष्ट मंडल उनके कोलकाता आगमन पर राजभवन में उपस्थित हुआ एवं आचार्यश्री तुलसी व तेरापंथ के अवदानों व समाज के नैतिक एवं चारित्रिक विकास हेतु हो रहे कार्यक्रमों की अवगति उन्हें दी गई। इसी भांति एक शिष्ट मंडल साध्वीश्री कंचनप्रभाजी के सान्निध्य में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल डा. वीरेन जे. शाह से व साध्वीश्री त्रिशलाकुमारीजी के सान्निध्य में प.बं. के तत्कालीन राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी से भेंट करने पहुंचा व जैन तेरापंथ समुदाय के साधु-साध्वियों, समण-समणियों एवं श्रावक-श्राविकाओं द्वारा भगवान महावीर के अहिंसा, समन्वय, मैत्री, सहअस्तित्व आदि संदेश के सम्प्रसारण हेतु किए जा रहे कार्यक्रमों की अवगति दी।
मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी ‘लाडनूं’ के पावस प्रवास संपन्न कर विहार करने के बाद कोलकाता क्षेत्र को साध्वीश्री मधुस्मिताजी, साध्वीश्री सोमलताजी, साध्वीश्री जतनकुमारीजी ‘कनिष्ठा’, साध्वीश्री कंचनप्रभाजी, साध्वीश्री निर्वाणश्रीजी, साध्वीश्री कनकश्रीजी, साध्वीश्री अणिमाश्रीजी, साध्वीश्री मंगलप्रज्ञाजी, साध्वीश्री त्रिषलाकुमारीजी, शासनश्री मुनिश्री धर्मरुचिजी, मुनिश्री आलोक कुमारजी, शासनश्री साध्वीश्री यशोमतीजी, साध्वीश्री पीयूषप्रभा व वर्तमान में साध्वीश्री स्वर्णरेखाजी ने अनथक श्रम कर श्रावक समाज की सार-संभाल की और नये-नये आयाम उदघाटित किए हैं। साध्वीश्री जतनकुमारीजी ‘कनिष्ठा’ की अभिप्रेरणा से सन 2001 में वृहत्तर कोलकाता से ‘योगक्षेम यात्रा’ के रूप में एक विशाल संघ पूज्यवरों के श्रीचरणों में अहमदाबाद पहुंचा और गुरुदेव से कोलकाता पधारने की पुरजोर अर्ज की। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एवं युवाचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोलकाता संघ की भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए महती अनुकंपा कर सुदूर यात्रा में प्रथम यात्रा पूर्वांचल की ओर उसमें बंगाल और कोलकाता की घोषणा की। उसके बाद प्रतिवर्ष पूज्यचरणों में यहां प्रवासित चारित्रात्माओं की अभिप्रेरणा से कोलकाता के संघ बराबर पहुंच रहे है। ‘अमृत पुरुष अमृत उत्सव पर महामेघ बन बरसे, सन 2017 का पावस बगसाया कोलकातावासी हरसे।’ कोलकाता के संघीय इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जुड़ा जब परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोलकातावासियों पर असीम कृपा कर वर्ष 2017 का चातुर्मास कोलकाता के बगसाया जो कोलकाता के राजारहाट में ।AMMERF के प्रांगण में सफलतम चातुर्मास संपन्न किया। साध्वीश्री कनकश्रीजी की अभिप्रेरणा से अमृत पुरुष वर्धापना यात्रा का संघ श्रीचरणों में केलवा पहुंचा। सभा के संस्थापक अध्यक्ष स्व. जंवरीमलजी बैंगानी की मौजुदगी में श्रावक समाज ने गुरुवर से कोलकाता पधारने की पुरजोर अर्ज की। कोलकातावासियों के अर्ज को स्वीकार कर अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महती अनुकंपा कर सन 2017 का चातुर्मास कोलकाता में करने की घोषणा की। यह इस संघ की अविस्मरणीय उपलब्धि रही। भाई श्री कमल कुमार दुगड़ के अध्यक्षीय नेतृत्व में चातुर्मास व्यवस्था समिति का गठन हुआ एवं उनके सक्षम नेतृत्व में आचार्य महाश्रमण एजुकेशन एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन, महाश्रमण विहार, राजारहाट के भव्य प्रांगण में सफलतम चातुर्मास सम्पन्न हुआ। वृहत्तर कोलकाता का पूरा श्रावक समाज पूज्यवरों के प्रति श्रद्धा से अभिभूत एवं नतमस्तक है तथा साध्वीश्री कनकश्रीजी की सतत प्रेरणा के लिए कोलकाता श्रावक समाज हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता है।
दिनांक 17 जुन 2017 का वह पावन दिन था जब आचार्यश्री महाश्रमणजी का महासभा भवन में एक दिवसीय प्रवास हेतु आगमन हुआ। कोलकाता सभा के विशेष प्रयास से महासभा भवन में सामने का पूरा स्थान खाली करवाया गया एवं आचार्यप्रवर के अभिनन्दन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 18 जून 2017 नेताजी इंडोर स्टेडियम में वृहत कोलकाता स्तरीय आचार्यश्री महाश्रमणजी का नागरिक अभिनंदन किया गया। पश्चिम बंगाल की माननीया मुख्यमंत्री श्रीमती ममता बनर्जी ने स्वयं उपस्थित होकर परमपूज्य गुरुदेव का संपूर्ण प. बंगाल जनमानस की तरफ से अभिनंदन किया व गुरुदेव से कोलकाता में लंबे प्रवास की अर्ज की। सभा द्वारा समय समय पर महासभा के निर्देशानुसार संघीय आयामों को गति प्रदान करने हेतु अनेकों कार्यक्रमों की आयोजना की जाती है। केन्द्र की आज्ञानुसार व चारित्रात्माओं की प्रेरणा से समय समय पर ज्ञानशाला शिविर, बंगाल-बिहार स्तरीय श्रावक सम्मेलन व कार्यशालाओं का आयोजन भी करती रहती है। विगत कई वर्षों से ज्ञानशाला प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण शिविर, परीक्षाएं एवं मूल्यांकन समय समय पर नियमित रूप से आयोजित होते रहे हैं और वर्तमान में महानगर कोलकाता के प्रशिक्षकों की संख्या लगभग 200 हैं। वर्तमान में आंचलिक संयोजिका डा. प्रेमलता चोरड़िया के नेतृत्व में महानगर में विभिन्न सभाओं के अन्तर्गत लगभग 40 ज्ञानशालाएं चल रही है, जिनमें लगभग 800 ज्ञानार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। विगत कई वर्शों से चारित्रात्माओं की सतत प्रेरणा से उपासक श्रेणी का उल्लेखनीय विकास हुआ है। केन्द्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कोलकाता के उपासकों ने समय समय पर प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। उपासकों के नियमित शिविर भी संचालित किये जाते हैं। वर्तमान में कोलकाता महानगर के उपासकों की संख्या 100 से अधिक है। जैन विश्व भारती में ‘जय भिक्षु निलयम’ के अंतर्गत निर्मित कोलकाता भवन में कोलकाता सभा ने कोलकाता श्रावक समाज के सहयोग से 4 फ्लैट सभा के लिए आरक्षित किये एवं सन 2009 में पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के लाडनूं चातुर्मासिक प्रवास में सभा ने इन फ्लैटों में 400 दिनों का आबंटन कर कोलकाता श्रावक समाज को सेवा, दर्शन, उपासना का समुचित अवसर प्रदान कराया।
चारित्रात्माओं के रास्ते की सेवा/उपासना में कोलकाता सभा को वृहत्तर कोलकाता के श्रावक समाज व सभी संघीय संस्थाओं का निरंतर योगदान प्राप्त होता रहता है। महासभा भवन में होने वाले चातुर्मास एवं प्रवास के समय महासभा भवन के परिपार्श में स्थित व्यवसायिक केन्द्रों के श्रावकों को दर्शन, सेवा, उपासना का सहज लाभ मिलता है तथा ज्ञान दर्शन, चारित्र एवं तप की सम्यक् आराधना होती है। इसी भांति चारित्रात्माओं की प्रेरणा से पूज्यवरों दर्शनार्थ एवं सेवा उपासना के विशेष उद्देश्य से समय समय पर होने वाली संघबद्ध यात्राओं के आयोजन में भी सभा सबके सहयोग से अपने दायित्व का सम्यक् निर्वहन करती है। कोलकाता महानगर सौभाग्यशाली है कि इस क्षेत्र को गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी का वरद हस्त एवं आर्शीवाद प्राप्त है। इस महानगर से पूज्यवरों को अनेक अपेक्षाएं हैं। महानगर में विकास की अनगीनत संभावनाएं हैं और पूज्यवरों के मार्गदर्शन से संघीय अवदानों - अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, अहिंसा प्रशिक्षण, जैन जीवन शैली आदि को व्यापक स्तर पर प्रसारित एवं क्रियान्वित किया जा सकता है। यहां का जनमानस प्रबुद्ध है और उसकी सोच सदैव सकारात्मक रही है। परमपूज्य गुरुदेव की कोलकाता सभा पर हमेशा ही कृपा दृष्टि रही है। सबसे बड़ा उदाहरण पूरे भारतवर्ष में केन्द्रीय संस्थाओं के अलावा किसी सभा अध्यक्ष का नाम गुरुइंगित से होता है तो वह एक मात्र सभा कोलकाता सभा ही है। संस्थापक अध्यक्ष श्री जंवरीमल बैंगानी से लेकर वर्तमान अध्यक्ष श्री बुधमल लुनियां सभी गुरु इंगित से अध्यक्ष बने यह कोलकाता सभा के लिए गौरव की बात है।
सभा कोलकाता संघीय दायित्वों के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों का भी बराबर सजगता से निर्वहन करती है। सभा ने समय समय पर आंख ऑपरेशन व स्वास्थ शिविर, जरूरत मंदों को नित्य प्रयोजनीय सामग्री उपलब्ध कराती रहती है। अभी तक सैकड़ों व्यक्तियों को आंखों की रोशनी प्राप्त करने में सहायक हुई है। समाज के कमजोर वर्ग के व्यक्तियों की सार-संभाल भी करती है। उनकी आवश्यकताओं को यथासंभव स्वयं अपने या केन्द्रीय संस्थाओं के माध्यम से पूरा करने का प्रयास करती है।